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म्हारी आखातीज
घी‌-खीचड़े रो भोग
जे सागै खाटो मिलज्या
रैवां बारों मिनहां निरोग।
खेत में सोनचिड़ी दिखज्या
फोगड़ां गां सीटा
रामजी छांट करदे
सुगन मानां मोटा।
के तो घरै बीनणी आसी
के भरसी कोठ्या मोटा
बारों मिनहां धीणो रैसी
पीसां रो नीं होसी टोटा।।
मत तन्हाई की बात करो
जरा इस पर‌ भी गौर करो
मयखानो ने बोलने की आजादी दी
आंखें मिलीं तो खामोश हो गया।।
तुलना ना करना कभी
मेरे लिबास के शौक की
मेरे कफ़न से
लिबास मैं  खुद तय करता हूं
कफ़न मेरा दूसरे तय करेंगे।।
लोग फिसलते उम्र के हर मोड़ पर हैं
रफ्तार फिसलने की उम्र बढने
पर थोड़ी कम  हो जाती है
दिमाग लगाने को थोड़ा वक्त मिल जाता है।।
नदियां ही ठीक रही हैं
हर दौर में मानव जीवन के लिए
मर्यादाएं तय कर सकें तो
बेहतर है प्यास से निपटने के लिए
समुद्र तो खारे होते हैं
मर्यादा का पैगाम जरूर देते हैं।।
मैदे से बनी
घी में भूनी
दूध में पकाई
जोड़ दी चीनी
किशमिश से
रसीली बनी
खायी मैंने
तेरे मुंह पानी ।।
तारे हैं पूरे, चांद है आधा
उल्लू की आवाजें नींद में बाधा
छत पर ना सोना अकेले
यदि साथ ना हो अपनी राधा।।
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